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©डॉ. संतराम आर्य

परिचय- वरिष्ठ साहित्यकार, नई दिल्ली, जन्म 14 फरवरी, 1938, रोहतक।


 

listen to us too क्यों मजबूरी नहीं समझते मात पिता ये मेरे

मेरे भी तो अपने हैं और अपने नए बसेरे

मां कहती है कष्ट सहा था कितने दिन तक तेरा

पिता कहते हैं युवा होने तक दिया हर खतरे में पहरा

नहीं बनाया मुझे उन्होंने मैं तो अपने आप बना था

इनकी आनंद मस्ती के कारण मेरा जन्म हुआ था

प्रकृति नियम के कारण इनका मुझसे प्यार घना था

कब कहा था मैंने इनसे मुझे विद्वान बनाओ

पढ़ा लिखा कर लाड प्यार से मुझको गले लगाओ

मना करने पर भी जबरन स्कूल छोड़ने जाते थे

नहीं पढ़ने पर मम्मी पापा दोनों मार लगाते थे

जब मेरे हो गए अपने बच्चे लगने लगे हम मन के कच्चे

युवा पीढ़ी से पुछलो अब कौन बुरे और कौन हैं अच्छे

शादी से पहले इन दोनों ने क्यों नहीं हमें बताया

सदा राज क्यों रहेगा इनका कभी नहीं समझाया

सच जानो तो इनसे ही पूछो इसमें कहां दोष है मेरा

सदियों से यह रीत बनी है सुख दुख रैन बसेरा

संतराम भी तो खुद कहते हैं यहां कोई नहीं मेरा तेरा।

 

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