मुहब्बतों का ये अंजाम बुरा लगता है | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा
किसी के लब पे तेरा नाम बुरा लगता है,
गैर कोई दे तुझे पैगाम बुरा लगता है,
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कहा है तुमसे कई बार इशारों में मगर,
आज कहता हूँ सरेआम बुरा लगता है,
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खबर है जानते हैं सब तुम्हें शहर में पर,
तेरा सबसे दुआ-सलाम बुरा लगता है,
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बीत जाता है दिन उलझनें सुलझाने में,
जब आती है गम की शाम बुरा लगता है,
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नहीं कोई दुश्मनी पहले की है जो मुझसे तेरी,
तुम्हें फिर क्यों मेरा हर काम बुरा लगता है,
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हमें दिक्कत नहीं तू गैरों को पिलाए अगर,
मिले हमें जो खाली जाम बुरा लगता है,
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चार दिन की खुशी, गम उम्र भर का फिर,
मुहब्बतों का ये अंजाम बुरा लगता है,
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