जिन्होंने मुझे कवयित्री बनाया | ऑनलाइन बुलेटिन
©डॉ कामिनी वर्मा
परिचय- भदोही, उत्तर प्रदेश
एक दिन मैं जा रही थी,
विश्वविद्यालयी उड़न दस्ते की टीम में।
गाड़ी भाग रही थी, 80 की रफ्तार में।
अपने भाव में, सहयोगियों से बातें करते हुए।
तभी दीर्घ कालीन अवकाश के बाद, एक फोन आया।
हेलो के साथ सामान्य शिष्टाचार, हाल-चाल हुआ।
बातों के साथ, उन्होंने एक नए प्रकार का दायित्व मुझ पर डाला।
बोले, मेरी एक पत्रिका प्रकाशित हो रही है।
कविताओं का संकलन है, उसके लिए रचना करो।
मैंने कहा श्रीमान, इस विधा से मैं रूबरू नहीं हूं।
न ही कोई रुचि है, न कभी लिखी है।
मैं तो गद्यकारा हूं, निबंध लिखती हूं।
तभी उन्होंने कहा, आपमें प्रतिभा है, आप लिख सकती हैं।
मैं किंकर्तव्यविमूढ़, करूं तो क्या करूं। एक तो सम्मानित, श्रीमान का आग्रह।
दूसरे मेरी क्षमता को चुनौती।
बड़ा अच्छा लगता है, मुझे चुनौती स्वीकार करना।
फिर भी एक अविश्वास का भाव,
क्या मैं कर सकूंगी, मेरे लिए यह दुष्कर कार्य।
उन्होंने हिम्मत दिलाई, और कहा आप इस विषय में विचार करें।
मैं एक सप्ताह बाद, कॉल करूंगा।
तब तक एक रचना, तैयार कर लीजिए।
लगभग एक सप्ताह बाद, फिर फोन आया।
परीक्षा के काम में, काफी व्यस्तता और
स्वाभाविक अरुचि के कारण,
कविता की रचना नहीं हो पाई।
उन्होंने पुनः उत्साह और विश्वास दिलाया।
कुछ विषयों पर, विचार विमर्श किया।
पता नहीं कैसे, पर सोई शक्ति जाग गई।
और इसी दिन, कुछ पंक्तियां बन गईं।
पढ़कर ठीक-ठाक लगीं।
मैंने सोचा श्रीमान को,
अपना सृजन बता देना चाहिए।
और उसमें संशोधन के लिए,
दिशा निर्देश भी लेना चाहिए।
मैंने उन्हें फोन मिलाया, पर फोन व्यस्त।
मेरा भी यह नया नंबर था,
उन्होंने भी शायद ध्यान नहीं दिया।
मेरी व्यग्रता बढ़ी,
मैंने दो बार फोन और मिलाया।
जबकि यह अनुचित कार्य मैं कभी नहीं करती।
10 मिनट बाद बात हुई,
लगा सदियां गुजर गई।
मैंने अपनी पंक्तियां उनको सुनाई,
और उन्होंने वाह” कहकर बधाई दी।
मेरा मन, सातवें आसमान पर था।
विश्वास ही नहीं हो रहा था,
मेरे लिए यह दुष्कर कार्य, मैंने कर लिया।
मैं कृतज्ञ हुई उनकी, जिन्होंने यह कार्य कराया।
वह मधुकर थे, जिनके प्रोत्साहन ने,
मुझे कवयित्री बनाया।
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