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मजदूर कथा…

©उषा श्रीवास, वत्स

परिचय- बिलासपुर, छत्तीसगढ़.


 

सूरज उगने से पहले घर से जाता हूँ

सूरज डूबने पर ही घर को आता हूँ,

क्या सर्दी,क्या गर्मी बारिश को सह जाता हूँ

बैठता नही छाँव में ठोकरें दर-दर की खाता हूँ।

 

कहते हैं मजदूर को जग के हैं भगवान

मुश्किलें सहता हूँ जरा सा नही किसी को भान,

दो रोटी के लिए हर रोज होता हूँ परेशान

श्रमिक हूँ डरता हूं नही लेता किसी का अहसान।

 

विकास को नई दिशा मैं देता हूँ

मजदूरी में दो रोटी ही लेता हूँ,

दैनिक मजदूरी से जीवन चलाता हूँ

सुविधाओं से दूर खून पसीना खूब बहाता हूँ।

 

जी तोड़ मेहनत भी मैं करता हूँ

काम के नशे में बस चूर मैं रहता हूँ,

करता श्रम हर रोज महल बनाता हूँ

नेक इंसान हूँ मेहनत की रोटी खाता हूँ।

 

अपनी मजदूरी का पूरा मोल भी नही पाता हूँ

मजबूरी और मंहगाई में परिवार चलाता हूँ,

बेटी की शादी करना है पगड़ी गिरवी रख आता हूँ

बेटे की फीस भरने के लिए बैलगाड़ी में जोता जाता हूँ।

 

न बीमार होता न लाचारी को रोता हूँ

मजदूर हूँ श्रम के फसलें बोता हूँ,

संयमित रहता स्वाभिमान को न खोता हूँ

दूरगामी परिणामों से अवलोकित ख्वाहिशों को ढोता हूँ।

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