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बचपन की यादों में प्यारी गौरैया …

©मंजुला श्रीवास्तव, व्याख्याता

परिचय- कोरबा, छत्तीसगढ़


 

गौरैया वह छोटी सी चिड़िया जिसे देख, सुन बचपन गुजरा आज भी झिलमिलता है आंखों के सामने, मेरे स्कूल के दिनों में हां मुझे अच्छे से याद है कि जब भी मैं अपनी कक्षा के बाहर प्रकृति को निहारती थी, ना जाने क्यों प्रकृति यह पेड़, यह पौधे, फूल पत्ती हमेशा मुझे आकर्षित करते थे, उसी पेड़ पौधों के बीच छोटी सी नन्ही चिड़िया जो अनायास ही ध्यान मेरा हमेशा खींचती थी, और मेरी चित्रकारी का हिस्सा सा वन बैठी थी, मैं हमेशा से ही चित्रकारी करती रहती थी, मुझे आज भी चित्रकारी पेंटिंग रंग करना पसंद है।

 

इसी प्रकृति प्रेम में मैं गोरिया से कब जुड़ गई पता ही नहीं चला, वह भी मेरे कलाकारी, चित्रकारी का हिस्सा बन गई। मुझे आज भी याद है पेड़ों की डालियों में चिड़िया बैठे दिखती थी यहां तक की कक्षा की खिड़की की छड़, रॉड, पर आकर बैठ जाया करती थी, और उसे देखना मुझे बहुत अच्छा लगता था और कभी-कभी तो दो चार दस, चिड़िया एक साथ खिड़की पर बैठकर जैसे मुझसे ही कुछ कह रही है, लगता था।

गौरैया

उनका इस प्रकार एक साथ चू- चू करना, मुझे सुनना, मन को बहुत भाता था एक अद्भुत अनुभूति होती थी। और यह सब ऐसा लगता था मानो वह गौरैया हमारे साथ सुबह हमें चू चू कर उठाकर साथ-साथ हमारे स्कूल आ गई हो और कक्षा में ही साथ बैठी हो फिर जब हम स्कूल से पैदल पैदल घर की ओर वापस जाते थे तो जैसे गौरैया हमारे साथ साथ चल रही हो।

 

ऐसा लगता था हर डाल हर फूल की टहनी पर बैठे दिखाई देती थी छोटी सी चिड़िया जो गौरैया जिसे कहते हैं उसका नाम हमें बाद में पता चला,,,, और जब हम शाम 5:30 बजे घर से बाहर खेलने को मैदान में निकलते थे सारी चिड़िया झुंड में बिजली के तारों पर पंक्ति बद्ध होकर बैठ जाया करती थी, मानो जैसे हम बच्चों को खेलते देखने एक साथ आकर बैठ गई हो,वह सुंदर नजारा आज भी मेरी आंखों में कैद है कोई कैमरा होता उस समय मेरे हाथों में तो आज मैं दिखा सकती।

 

क्योंकि आज बहुत सुंदर नजारा देखने को भी नहीं मिलता,, ना तो वह आज खिड़की पर आती है नहीं बिजली के तारों पर बैठे दिखाई देती है और एक बात जो मुझे उस समय बड़ों से हम जब पूछते थे कि चिड़िया को बिजली के तारों में बैठने पर करंट क्यों नहीं लगता वह भी विज्ञान का एक तर्क बन जाता था, आप सभी इस को जानते होंगे, पर आज नहीं।

 

मुझे याद है कि छत पर जब हम चावल भी रखते थे वह आती दाना चुगती, लेकर जाती पर आज क्यों नहीं मेरी कुछ पेंटिंग में वह नजारा बहुत बनाया है वह छोटी चिड़िया आज प्रकृति से गायब सी हो रही है, आज मेरे बेटे को जब मैं यह सब बताती हूं तो वह हंसता है बोलता है आप तो झूठ बोल रहे हो गलत बोल रहे हो,,, क्योंकि मेरे बेटे ने वह नजारा आज तक देखा ही नहीं,, इक्का-दुक्का उसने देखी हो….

 

लेकिन वह नजारा जो हमने अपने बचपन में देखा है उसे नहीं मिला एक साथ ढेरों चिड़िया चूं चूं करती थी। बात भी सही है कैसे अपनी यादों को उसे अपनी नजरों को अपने अनुभव को उसे दिखऊ? पर वह मेरे जीवन के सुखद पल रहे हैं वह नजारा अनुभव बहुत ही दिलकश था, पर जब आज भी मैं, वही कोशिश करती हूं चावल और पानी का कटोरा रखती हूं उनके आने का इंतजाम करती हूं और इंतजार भी करती हूं,,, कि कभी तो मेरी कोशिश कभी तो मेरी कोशिश रंग लाएगी इंतजार खत्म होगा और चिड़िया छत पर आएगी और मैं उसे मोबाइल में फोटो में कैद कर लूं,,,,,

 

बचपन में मैंने तो गौरैया को पानी, में धूल में नहाते भी देखा है अठखेलियां करते देखा है। पानी में खेलते डुबुक डुबुक,,, खेलते देखा है शायद आपने भी देखा हो, जहां भी उन्हें पानी मिलता वह ऐसे ही पानी में मस्ती किया करती दिखाई देती थी।

 

पर आज पानी भरा कटोरा टब,, रखने पर भी वह खेलने नहीं आती, कहां है मेरी गोरिया ना जाने कहां चली गई मानो हमसे नाराज सी हो गई जैसे मैंने पहले ही बताया वह हमें हर शाम मैदान में खेलते देखा करती थी तारों पर एक साथ ढेरों चिड़िया छोटी-छोटी एक साथ बैठा करती थी और फिर देर शाम सूरज ढलने पर उनका एक साथ झुंड में उड़ना वह नजारा आज भी मुझे याद आता है जैसे शाम, वह भी अपने घर को चली गई,, वह मनोरम दृश्य क्यों मेरी जिंदगी में एक अहम हिस्सा बन गया है जो मुझे सुकून देता है,,,,

 

मुझे याद है कि हम जब स्कूल की लंबी छुट्टी के बाद स्कूल वापस अपनी कक्षा में जाते थे तो जरूर एक न एक कक्षा में गौरैया के घोंसले भी दिखाई देते थे साथ ही उनमें अंडे और कभी-कभी तो छोटी छोटी चिड़िया के बच्चे भी उसमें हम देखा करते थे, फिर मैडम सर के कहने पर उस घोसले को हम सुरक्षित स्थान पर पेड़ों के पास बाहर छोड़कर भी आते थे, आज ना जाने वह घोसले ही दिखाई नहीं पड़ते नाही चिड़िया अपने बच्चों के लिए दाना लाते दिखाई देती है।

 

कहां गई मेरी नन्ही सी चिड़िया आज भी मन करता है वह एक बार फिर हमारे छत पर आए जो कर मुझसे बातें करे नन्हे बच्चों के साथ कहीं पर दिखे,, पानी में डुबकी लगाती हुई,,, तारों में लाइन से बैठे दिखे,,, पर आज मनुष्य की विकास की होड़ में मनुष्य अपने मतलब के लिए किसी को नहीं देखता और इतना आगे निकल गया है कि हम पक्षियों के घरों को लूट कर बैठे हैं जो पक्षी पेड़ पर बैठते थे वह पक्षियों के लिए हमने पेड़ ही नहीं छोड़े उनके घरोंदो को हम कहां देख पाएंगे पक्षी सब नाराज हैं वह घोसले कहां बनाएं जब पेड़ ही हम काटे जा रहे हैं उनका घरौंदा कहां बनेगा यह बड़ी विडंबना है !!!!!!

 

ना ही उनके लिए कोई छाया ना ही कोई दाना पानी और उस पर मोबाइल टावर की तरंगों ने उन्हें परेशान किया हुआ है।।  बहुत बड़ी विडंबना शायद पक्षी वह गौरैया नाराज है,, प्रकृति चुप सी हो गई है ना ही कोई चेह च ह हट गोरिया की है जो सुबह में जगाया करती थी,,,,

 

क्यों ना क्यों ना थोड़ी कोशिश आज हम सभी करें कि चिड़िया रानी को बचाएं वह भी हमारे प्रकृति पर्यावरण का अहम हिस्सा है विज्ञान खुद यह मानता है उनके होने से हमारे अनाज सुरक्षित रहते हैं हमें कीटनाशक दवाइयों की जरूरत नहीं पड़ेगी अगर हमने चिड़िया को बचाया है गौरैया को भी हम फिर से जीने का हक दिला सकते हैं कुछ दाना कुछ पानी तो कुछ तरंगों से जो पक्षी परेशान हैं।

 

उसका सही इंतजाम हम कर सके ऐसा हमें कुछ करना होगा। ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी नन्ही चिड़िया गौरैया को फिर से देख सके जो हमने महसूस किया है गौरैया का साथ वह भी अनुभव करें कहीं ऐसा ना हो कि गौरैया इतिहास का हिस्सा बन जाए केवल किस्से कहानियों में ही रह जाए, ना ही मेरी पेंटिंग में ही बाहर नहीं जाए,,,,,

 

उसको जीवंत बच्चे देख सके ऐसा तो कुछ करना होगा कुछ तो करना होगा उन्हें फिर से जीवन देने के लिए सभी का छोटा छोटा प्रयास एक बड़ा बदलाव ला सकता है।

 

छोटी सी नन्ही चिड़िया का संरक्षण जरूरी है गोरिया जिसका नाम है फिर से प्रकृति से जुड़ सके ऐसा तो कुछ जरूर करना होगा काम है तैयार है तो हाथ बढ़ाएं अपना छोटा सा योगदान गोरिया को जरूर वापस लाएगा ऐसा मन क्रम वचन से जरूर करना होगा,,,

 

मेरी प्यारी चिड़िया फिर से चूं चूं कर बात करें…

 

पानी धूल में बिंदास खेले मनोरम मेरा मन करे आ जाओ साथियों फिर से गौरैया का कुछ सही इंतजाम करें; कुछ तो इंतजाम करें।।

 

 धन्यवाद

 

 

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