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ये वतन ही हमारा…

©गायकवाड विलास 

परिचय- लातूर, महाराष्ट्र


 

अपने घर का अच्छा बुरा तुम हरपल सोचते हो,

अपनों के लिए ही तुम यहां हरपल जी रहे हो।

अपनों के लिए सोचना आद्य कर्तव्य है तुम्हारा मगर,

अपने मां भारती को तुम क्युं यहां अनदेखा करते हो?

 

मेरी तुम्हारी और अपने बच्चों की यही जगत जननी है,

ये हरी-भरी खुशहाल सृष्टि ही हमारा उज्ज्वल भविष्य है।

करो जतन तुम अपनी मिट्टी का जो सदियों तक किसी और की थी,

जो इतिहास गवाह है उसे तुम कैसे पल-पल भूलते हो।

 

ये वतन ही हमारा सभी का स्वर्ग से सुन्दर घर है,

उसी घर के लिए कितनों ने यहां अपना बलिदान दिया है।

उन्हीं शहिदों के बदौलत आज हम यहां खुशहाल जी रहे है,

यही सबकुछ जानकर भी तुम कैसे इतने खुदगर्ज बने हो।

 

कुछ हैवान आज भी है इस संसार में जो चाहते नहीं खुशहाली,

जो आज हम एक बनकर मनाते है ईद और दिवाली।

यही एकता,भाईचारा और अखंडता उन्हें रास नहीं आता,

इसीलिए वो अपने भले के लिए ही हमें हिन्दू मुस्लिम का पाठ पढ़ाते है।

 

अब तो जान लो मेरे देशवासियों उनका ये खेल निराला,

इस मिट्टी के लिए यहां सभी ने है अपना खून बहा डाला।

ये मिट्टी हम सभी की है,कुछ लोगों की जागीर नहीं है,

इसीलिए हम सभी को यहां एक बनकर ही अपने मां भारती के लिए लड़ना है।

 

कल तुकडों तुकडों में बिखरा हुआ था ये सारा देश लेकिन,

आज संविधान की वजह से हम सब यहां मान-सम्मान से जी रहे है।

उसी संविधान के बिना आयेगा फिर से जलजला यहां पर,

और संविधान ही नहीं रहेगा तो फिर क्या? गुलामी का मंजर तुम्हें देखना है।

 

अपने घर का अच्छा बूरा तुम हरपल सोचते हो,

अपनों के लिए ही तुम यहां हरपल जी रहे हो।

मगर उन शहिदों की पुकार भी तुम सुनो कभी,

जिनके लहू के बलिदान से ही ये तिरंगा यहां शान से लहराता है – – – अभिमान से लहराता है।

 

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