एक ऐसा दौर आया | newsforum
©प्रीति विश्वकर्मा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश
एक मार्मिक वर्णन...
पाला था, बड़े नाज से जिसने
क्या बेटा उस नाज से पाल पाया
उसने सारा वक्त जिसके लिये गवाया
उसी ने अकेला कर, अकेला छोड़ आया
एक ऐसा दौर आया, बेटा बाप को वृद्धाश्रम छोड़ आया…
मिन्नतों से जिसने अपना परिवार बढ़ाया,
खुद ना हो पढ़ा चाहे, फ़िर भी उसको पढ़ाया
बेटा परिवार बढ़ते ही, बोझ कम करने को
उस फ़रिश्ते को दर दर ठोकर खाने को छोड़ आया
एक ऐसा दौर आया, बेटा बाप को वृद्धाश्रम छोड़ आया
ना जाने कैसे वो बेटा बाप बिन रह पाया,
जिसे रोता बिलखता छोड़, मुंह मोड़ आया
त्याग दिए जिसने अपने सारे सपने, ताकि खुश हो उसके अपने..
उसे यूं छोड़ते तुझे तरस ना आया, बोल क्या तेरॆ दिल को रहम ना आया
एक ऐसा दौर लाया, बेटा बाप को वृद्धाश्रम छोड़ आया..
कब तक ये छोड़ने का यू दौर चलेगा, हमको पालने वाला कही ओर पलेगा . .
क्यूं छोड़ देते हो इन फ़रिश्तों को, जिन्होंने जोड़ना सिखाया रिश्तों की डोर को . .
नन्हा सा परिन्दा था तुझे उड़ना सिखाया, कांटों बच निकलना सिखाया . .
उनको ही काँटा समझ निकाल आया . .
तुने तो इन्हें जीते जी रूलाया, घर की जो है आत्मा उन्हें क्यूं तड़पाया . .
क्यूं! एक दौर ऐसा आया, बेटा बाप को वृद्धाश्रम छोड़ आया . .