कल ज़िंदा था ज़मीर…
©गायकवाड विलास
हर जगह साजिश,जैसे दुनिया सारी चक्रव्यूह बनी है,
करें किस पे भरोसा हर चेहरा यहां नकाब के पीछे छुपा है।
राजनीति हो या हो ये सारा बदला हुआ संसार,
अब इस ज़माने में,कौन यहां पे सच्चाई के राहों पर चलता है।
यक़ीन दिलाकर,हर चेहरा यहां पे रंग बदलता है,
बेईमानी के इस आलम में,गिरगिट तो युंही बदनाम है।
कल ज़िंदा था ज़मीर,उसी अनपढ़ दिलों के अंदर,
आज ज़मीर बेचकर हर चेहरा यहां पे ईमानदारी की बातें करता है।
रग रग में बहता है उसी बेईमानी का लहू,
और इस जमाने में आज हर कोई ख़ुदको फरिस्तां कहता है।
गुज़र गया वो दौर,जहां इन्सानियत थी घर-घर की दीवारों में,
मगर आज वो घर ही कहां है,इस बदले हुए नए ज़माने में।
भले ही बदला है आज ये ज़माना हद से ज्यादा मगर,
आज भी इस नए ज़माने में वही लहू के निशां अभी बाकी है।
हर जगह साजिश,जैसे दुनिया सारी चक्रव्यूह बनी है,
करें किस पे भरोसां,हर चेहरा यहां नकाब के पीछे छुपा है।
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