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एंटीबॉडी | Newsforum

©शीबा, अलीगढ़, उत्तरप्रदेश

परिचय- शीबा अलीगढ़ की रहने वाली हैं। वे अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से एमए हैं। वे आख़री क़लम प्रकाशन के अन्तर्गत एक सह लेखिका के रूप में कई कविताएँ व किताबे लिख चुकीं हैं। वे जीवन में कहानी, कविता लेखन से अपने सपनों को एक नयी उड़ान देना चाहतीं हैं। और तरक्की के रास्ते में आगे बढ़ना चाहती हैं।


 

 

मुसीबत के बाद एक खुशी भी आती है।

 

गम़ ना कर मुश्किल की घड़ी भी टल जाती है।

 

सफर लम्बा हो भी तो क्या हिम्मत हारना है।

 

उस मुश्किल वक्त के लिए भी एक नयी राह निकालना है।

 

दु:ख की काली रात भी टल जाएगी।

 

आज आंखों में नींद नहीं कल तो आएगी।

 

दु:ख के बादल एक दिन बरस भी जाएंगे।

 

फिर से एक नयी उम्मीद की किरन भी चमकाएंगे।

 

गम़ ना करो मुसीबत टल ही जाएगी।

 

फिर से हंसी के पल खुशियों के रंग लाएगी।

 

यह भी तो जिंदगी जीने की राह है।

 

बस दु:खों को मुसकुराहट में छुपा लो यह भी जीने की एक चाह है।

 

आज मुश्किल सफर है कल गुज़र भी जाएगा।

 

मुसीबत की घड़ी भी टल जाएगी अंधेरी रात के बाद नया सबेरा भी आएगा।

 

हमारी जिंदगी में भी हजा़रों ऐसी ( Antibodies ) होती हैं जो हमें हमारे बुरे वक्त में एक ताकत और हिम्मत बनकर हर दु:ख-दर्द से लड़ने का हौसला देती है। कभी-कभी जब हम अचानक से ही किसी ऐसे दर्दनाक हादसे से रुबरु होते हैं जहां सब्र और हिम्मत दोनों ही टूट जाती है। तब हमारी Antibodies हमारे लिए दवा से भी ज्यादा असरदायक होती है। यह Antibodies किसी दवा की दुकान पर पैसों से नहीं मिलती। यह हमारी जिंदगी के वह अनमोल और नायाब रिश्ते होते हैं जिसके आगे हजारों लाखों की दवा भी से भी पूरी नहीं कर सकते है।

यह Antibodies मां की बेलोस मुहबबत दुआएं और मां की आंखों से निकाले आंसू। भाइयों की एक ऐसी फिक्र जिनके सामने पैसों की कोई हैसियत ना होना, बस दिल और दिमाग़ में एक ही जि़द, एक ही जुनून कि बस जल्दी से सब कुछ ठीक हो जाए। जब आंखों के सामने बेबसी, लाचारी से हिम्मत टूटने लगती है तभी यह antibodies एक pain killers की तरह काम करती है। बहनों का प्यार सच में ही उनको लफ्जों में बयान नहीं कर सकते। डाक्टर के इलाज से ज्यादा मरीज़ के लिए एक अच्छा सुलूक भी दवा से ज्यादा असरदायक होती है।

 

जब अचानक से ही जिंदगी हार रहे होते हैं। आंखों में दर्द से नींद नहीं आती है, दर्द में तड़पते हुए जब बेतहाशा रोते हैं। तभी ममता से भरे हाथ सिर पर महसूस होते हैं। सारे दर्द, दु:ख भूलकर सारी रात आंखों में ही गुज़र जाती है। अचानक से ही जब जिंदगी की आस टूटने लगती है तभी सबके हाथ दुआओं के लिए उठ जाते हैं। लबों पर बेतहाशा दुआओं का व्रिद होने लगता है। यही वह antibodies होती हैं जो हमारे लिए फिर से जीने की चाह जगाती हैं। जिंदगी में जब हम टूट जाते हैं बिखर जाते हैं तभी हमारे लिए अल्लाह गै़ब से मदद करता है।

कहते हैं फरिशतों को कोई नहीं देख सकता लेकिन ऐसा नहीं है। दुनिया में भी फरिशतें होते हैं। पता नहीं कौन, कब, कहां, किस रुप में शामिल होता है। मां-बाप, भाई-बहन, भाभियां, दोस्त, रिश्तेदार, अनजाने लोग और कभी-कभी कोई चलता राही भी, यह सब भी एक फरिशतों की तरह ही होते हैं। जब जिंदगी में कोई मुश्किल आती है ना अगर उस वक्त कोई आकर कहे अरे कुछ नहीं होगा सब ठीक हो जाएगा। सच में ही कुछ नहीं होता।

 

उस बात में एक ऐसा मुकम्मल यकीन होता है जो मरने वालों के चेहरे पर भी एक यकीन की जिंदगी की चाह की उम्मीद भर देता है जो फिर से जीने की ललक भर देता है। हर उठे हाथ लबों पर दुआ की फरियाद होती है। दुआओं का ही असर होता है जो बड़ी से बड़ी मुश्किलों को भी टाल देती है। उन दुवाओं में एक ऐसी तड़प शिद्दत होती है जो अर्श पर जाकर असर लाती है। उन्हीं दुवाओं की वजह से जिंदगी में रोशनी आ जाती है। मरते लोग भी फिर से जी उठते हैं।

दुवाओं के ताकत की शिद्दत खुदा को भी राज़ी कर लेती है और उन दुवाओं में एक तजजली, एक नूर पैदा हो जाता है। उन दुवाओं की बरकत से हर जिंदगी की टूटी आस जुड़ जाती है। यह दुआएं हमारे लिए, हमारे अपने ही करते हैं। जो किसी हाल में हमें खोना नहीं चाहते। बस यह वही फरिशतें होते हैं जो हमारे लिए हमारे हक़ में जिंदगी की दुआ करते हैं। कितनी बेबसी होती है ना जब तड़प-तड़प कर, चीखकर रो पड़ते हैं। उस वक्त हमारे दोस्त, एहबाब कोई सिर सहलाता है, कोई पढ़कर दम करता है, कोई सरहाने खड़े-खड़े सारी रात गुज़ार देता है।

 

(हां) यही तो हैं antibodies जिनमें अपनापन एक गहरा सुकून होता है। वह मुहबबत सुकून फिर से एक नयी उम्मीद, नयी हिम्मत देती है जो अपने आप से अपनी बीमारी से लड़ने की ताक़त देती है। दर्द तो ऐसा अलफा़ज है जिसको बयान करने के लिए अलफा़ज ही नहीं होते। जिस्म के साथ-साथ रूह भी ज़ख्मी हो जाती है। ऐसे ज़ख्म लगते हैं जिसका दर्द हर आती जाती सांस में महसूस होता है। हर सांस से ऐसा दर्द उठता है जिसको बयान करने के लिए अलफा़ज ही नहीं होते बस बेबस होकर रो पड़ते हैं। उस दर्द की शिद्दत इस कदर होती है कि बस जान ही नहीं निकलती। इस कदर दर्द को ना जाने कैसे सह जाते हैं। हर सांस पर एक ही चीख, एक ही बेबसी होती है। काश यह दर्द चला जाये या फिर यह जिंदगी ख़त्म हो जाये।

मगर ऐसा भी मुमकिन नहीं होता। जब भी ऐसे हालातों से गुज़रते हैं उस वक्त किसी की प्यारी सी मुस्कराहट भी जिस्म में रूह फूंक देती है। भले ही उस वक्त कितने ही दर्द में कराह रहे हों। जब भी किसी अपने को देखते हैं मानों आधी तकलीफ खत्म हो गई। जिंदगी में एक हौसला मिलता है। भले ही हाथों में कितनी भी सुईयां लगी हों, हाथों में कितनी भी सूजन क्यों ना हो, होंठ भले ही दर्द से कांप रहे हों, तबीयत कितनी भी खराब क्यों ना हो, जैसे ही अपने लोगों दोस्त, एहबाब के चेहरे देखते हैं मानों दर्द में राहत सी मिल जाती है। जैसे ही किसी अपने दोस्त एहबाब का मैसेज देखते हैं (तबीयत कैसी है) बस सब्र का दामन छूट जाता है। कितना भी दर्द क्यों ना हो, जवाब देने में देर नहीं करते और सारे दर्द, दु:ख एक छोटे बच्चे की तरह रो-रो कर बयान कर देते हैं।

 

हां यह वही antibodies होती हैं जो बिना पैसों के मिलती है। हर सुबह उठते ही उन अपने लोगों और प्यारे दोस्तों के फोन, मैसेज जिनको हमारी फ्रिक होती है। बस सुबह शाम में ना जाने कितनी बार तबीयत के बारे में पूछना। जब कभी हद से ज्यादा तबीयत ख़राब हो जाए तो खुद भी परेशान हो जाना। रो रो कर खै़र की दुआ माँगना कितने सच्चे रिश्ते होते हैं ना। कितना अपनापन होता है। परिवार के लोगों के रिश्ते हमें विरासत में मिले हैं मगर दोस्ती के रिश्ते हम खुद बनाते हैं। मुश्किल वक्त में हमारे दोस्त कदम़ कदम़ साथ चलते हैं। हमारी जिंदगी के क़ीमती हीरे-जवाहरात से भी ज्यादा कीमती हमारे अपने, रिश्ते, दोस्त, होते हैं।

बुरे वक्त में ही अपने सच्चे रिश्तों की पहचान होती है इस वक्त ही पता चलता है। कौन कितना करीब और कौन कितना दूर है। बुरा वक्त तो आकर गुज़र भी जाता है मगर हकी़कत से भी रुबरु हो जाते हैं। अगर सच्चे रिश्ते और अपनापन मिलता है सच में ही बड़ी किस्मत की बात होती है।ऐसे रिश्ते मां, बाप, भाई, बहन, भाभियां, दोस्त, एहबाब, किसी फरिशतों से कम नहीं। ऐसे रिश्तों को संभाल कर रखना चाहिए। यह वह अनमोल हीरे हैं जो बेशकीमती हैं। जिनकी चमक कभी फीकी नहीं पड़ती। ऐसे सच्चे रिश्तों को ( Thank you ) या शुक्रिया नहीं कहा जाता।

 

दिल की चहारदीवारी में एक आला मुक़ाम पर रखा जाता है। जिस तरह दिल की धड़कन धड़कती है उसी तरह सच्चे रिश्तों को भी दिल में बरकरार रखना चाहिए। बस यही हमारी हिम्मत ताकत हौसला देती हैं। अपने प्यारे रिश्तों, दोस्तों के लिए ( Thank you ) या शुक्रिया अलफा़ज बहुत छोटा नज़र आता है। (Thank you) या शुक्रिया कहने से एक परायापन सा लगता है। यह तो अपने दिल की वह नब्ज् हैं जिसके रुकने से दिल की धड़कन रुक कर जिंदगी ख़त्म हो जाती है। ठीक उसी तरह सच्चे रिश्तों की मुहबबत ना मिलने से इंसान की जिंदगी भी ख़त्म सी हो जाती है। उन सभी प्यारे प्यारे  रिश्तों, दोस्तों को दिल की नवज़ से जोड़ कर रखना चाहिए। उन सभी के लिए बेलोस बेपनाह अद़ब इज्ज़त मुहबबत और बेपनाह खुलूस। और एक प्यारी सी बहुत प्यारी सी मुस्कान।

 

ना में कोई दरिया ना कोई झील में एक समुन्दर हूं।

 

मेरा दिल मेरा अकस मुहबबत में बेपनाह मुहबबत हूं।

 

दरिया झील तो छोटी सी हैं समुन्दर की कोई थाह नहीं।

 

मेरी मुहब्बत बेलोस बेपनाह समुंदर जैसी मुझे कोई और चाह नहीं।

 

मेरे लब ना Thank you शुक्रिया कहते।

 

 

मेरी आंखों से आंसू इस कदर हैं बहते।

 

यह खुदा ने नायाब तोहफों से जो नवाजा़ है।

 

इन्हीं रिश्तों के अपनेपन ने फिर से जीना सिखाया है।

 

ऐ खुदा तेरा शुक्र अदा किस तरह करूं।

 

देकर मुहबबतों की दौलत किस्मत वाला बनाया है।

 

मेरे पास अलफा़ज नहीं इससे ज्यादा क्या लिखूं।

 

मेरे पास सच्चे रिश्तों की मुहबबत का समुन्दर है मुहबबत से ज्यादा क्या लिखूं।

 

खुदा से यही दुआ लबों पर है दामन खुशियों से भर देना।

 

 

मेरे अपने प्यारे रिश्तों, दोस्तों को बेपनाह खुशियां देना।


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