ऐ, सूरज जरा….
©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
ऐ, सूरज ज़रा कम आग बरसा तू इस जमीं पर,
ये संसार तो कितने सारे गमों में जल रहा है यहां पर।
तेरी ही रोशनी से ये सारा कुदरत जगमगा उठा है,
तेरी ही मेहरबानी से ये सारा संसार खिल उठा है।
पेड़, पौधे, पशु-पक्षी सभी को तेरी ही ज़रूरत है,
जिस दिन होगी तेरी कमी, वही इस संसार का आखरी दिन है।
धरती और सूरज का नाता, जब तक चलता रहेगा,
ये हरा-भरा संसार तब तक ही यहां पर खिलता रहेगा।
ये धरती की गोद तेरे ही रहमो-करम से फूले-फूली है,
धरती और सूरज के बिना तो ये सारा संसार ही अनाथ है।
सूरज की रोशनी से ही ये अंधेरा यहां पर जला है,
वर्ना ये अंधेरा कब किसी को सुकून से जीने देता है।
ऐ, सूरज जरा कम आग बरसा तू इस जमीं पर,
ज़रूरत से ज़्यादा आग से तो, ये ज़मीं भी हो जायेगी बंजर।
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