अमर शहीद भगतसिंह | ऑनलाइन बुलेटिन
©अशोक कुमार यादव
परिचय– मुंगेली, छत्तीसगढ़
भारत के हो तुम भगत वीर सपूत,
आज़ादी के कर्मनिष्ठ क्रांतिकारी।
समूल उखाड़े अंग्रेज रूपी लताएं,
चीखे फिरंगी गूंज उठी किलकारी।।
लेकर बंदूक और बम गोले हाथों में,
जब चलते थे गलियों में शेर सदृश्य।
डर के मारे तितर-बितर होते थे गोरे,
चापलूस भेड़िये हो जाते थे अदृश्य।।
थर्र-थर्र कांप-कांप कर भागे अंग्रेज,
उनकी रोम-रोम जयहिंद पुकार उठती।
फिर कभी ना लौट कर आएंगे हिंद में,
गोरी मेम रोकर अपने पति से कहती।।
जब तक जिंदा है भगत,राज,सुखदेव,
तब तक जन पर दमन कर ना सकेगा।
मुर्दा जन मन अब जीवित हो चुका है,
बांधकर बोरिया बिस्तर इंग्लैंड भागेगा।।
गांधी अहिंसा से अब काम न चलेगा,
भगत सिंह की हिंसा तुम अपना लो।
चुन-चुन कर मारो धारदार हथियार से,
दुल्हन रूपी मृत्यु को गले लगा लो।।