खता | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन
©उषा श्रीवास, वत्स
प्रेम की पावन गंगा
सबके मन को भाए।
शब्द हो तीखे अगर
बाणों सा घाव कर जाए।।
अधरों से मोती रही लुटाती
खता किया संसार में।
पथ प्रेम में सजे सभी
कहीं गुनाह ना हो जाए।।
चिंतन किया संबल दिया
रिश्तों के बाजार में।
फूंक-फूंक बढ़ाया कदम
अपने ना खो जाए।।
हृदय जड़त्व भगे अज्ञान हटे
ज्ञान यज्ञशाला नित्य सजे।
कर दो हौसले बुलंद कर ईश्वर
कोई क़दम डिगा न पाए।।
चंचल इस दुनिया में कितने
अविचल भरे होंगे।
ईश्वर से यही दुआ करती हूँ
कोई गुनाह ना कर पाए।।
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