पतंग सी लड़कियां | ऑनलाइन बुलेटिन
©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़, मुंबई
एक पतंग सी तो है, लड़कियों की ज़िन्दगी।
घर कोई भी हो करती है, दिल से बंदगी।
पापा के प्यार की डोर से बंध जाती है।
भाई-बहन की नोंक-झोंक, कन्नी छेद जाती है।
माँ की ममता के लाड व प्यार का क्या कहना,
मांझा की मजबूत जोड़ ही तो है अनमोल गहना।
जवानी की उड़ान संग आसमां में उड़ जाती है,
नए पतंग की डोर से फिर कट जाती है।
बड़े प्यार से पतंग काट कर कोई शादी निभाता है।
यूंही कोई तड़प-तड़प कर मरने को छोड़ जाता है।
न पतंग रही अपने डोर की ओर,
कभी मिल गया छोर, या कोई गया निचोङ।
पतंग सी ज़िन्दगी की इतनी सी कहानी।
समझो तो हक़ीक़त वरना बहता हुआ पानी।
पतंग सी ज़िन्दगी की इतनी सी कहानी।