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मुकद्दर | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©भरत मल्होत्रा

परिचय- मुंबई, महाराष्ट्र


 

रोटियां कोई मुफ्त की खाकर बिगड़ गया

कोई हाकिमों की बातों में आकर बिगड़ गया

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मेहनत में यहां जिसने भी लगाया नहीं दिल

उस आलसी इंसां का मुकद्दर बिगड़ गया

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अच्छा-खासा आदमी था काम का मैं भी

इश्क के चक्कर में उलझकर बिगड़ गया

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बंदिशों से मर गईं बेटी की हसरतें

बेटा ज्यादा लाड से अक्सर बिगड़ गया

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आने लगा मज़ा जो वाहवाही में मुझे

कहने लगे आलिम कि ये शायर बिगड़ गया

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