बीती विभावरी | ऑनलाइन बुलेटिन डॉट इन

©गायकवाड विलास
परिचय- मिलिंद महाविद्यालय, लातूर, महाराष्ट्र
सुवर्ण किरणों के संग भोर हुई सुहानी,
बीती विभावरी जाग री ।
देखो पंछी भी जाग गए नींद से,
चहचहाट उनकी ज़रा तू सून री।
भागदौड़ दिन की छीन जाएं सुकून,
ख्वाबों के पीछे भाग रहा संसार।
दिन का उजाला खत्म हो जाए धीरे-धीरे,
तब तारों भरी रात लगे मन को सुन्दर।
झील मिल तारें चमकते नील गगन में,
ठंडी-ठंडी हवाएं चली आंगन में।
ख्वाब सजाते सजाते नैनों में नींद हुई पुरी,
बीती विभावरी जाग री ।
जीवन की उलझनें कभी होती नहीं कम,
जिंदगी से जुड़े हुए है तकदीर के ग़म।
आती जाती रहेगी बहारें वो मनोहरी,
बीती विभावरी जाग री ।
चांद तारें से सजी है वो रातें,
अपनों के संग पल-पल रैना ये बीते।
सुवर्ण किरणों के संग भोर हुई सुहानी,
बीती विभावरी जाग री – – – बीती विभावरी जाग री।