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नारी | newsforum

©द्रौपदी साहू (शिक्षिका), कोरबा, छत्तीसगढ़


 

नहीं किसी से कम है नारी, दुनिया भी है अब इसपे वारी।

ममता की मूरत है जिसमें, धैर्य हृदय में धारी।।

नारी ही दुनिया दिखलायी, नारी गुरु बन सब सिखलायी।

नारी से संसार बनी, नारी कष्टों को सहना सिखलायी।।

परे कौन जग में नारी से, हैं सब नारी के ही अंश।

देकर जीवन पालन-पोषण करती, नारी से ही आगे बढ़ता वंश।।

मन में दया-प्रेम छलकता, सहनशीलता भरी अपार।

वात्सल्य की देवी नारी, सबको देती लाड-दुलार।।

नारी राधा-मीरा बन, प्रेम सभी को सिखलाती।

नारी लक्ष्मी बाई बन, शत्रु से लड़ना सिखलाती।।

जनहित के भी कर्म में, नहीं कोई अब खामी है।

घूंघट से निकल कर नारी भी, शासन की डोर थामी है।।

नारी सरल, सहज हृदय से, घर की करती सारी काज।

विवेक, बुद्धि से शोध कर, चांद-तारों पर पहुंची आज।।

चूड़ी,बिंदी पहनकर नारी, करती सोलह सिंगार।

धर हाथों में अस्त्र-शस्त्र भी, करती शत्रु पर वार।।

नारी बेटी-बहु बन, करती सेवा सत्कार।

त्यागमयी नारी का सबपर, है कितना उपकार।।


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