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पृथ्वी दिवस | ऑनलाइन बुलेटिन

©नीलोफ़र फ़ारूक़ी तौसीफ़

परिचय– मुंबई.


 

मैं पृथ्वी हूँ, भू, धरा, धरती या माता कहना।

हरियाली तो कहीं सूखापन का है गहना।

प्लास्टिक बहुत सताते मुझे, गन्दगी न फैलाना,

ज़ुल्म की आँधिया बहुत चली हैं अब नहीं सहना।

 

पेड़ लगाकर वातारण में कर लेना तुम सुधार,

हे मानव, ये धरती तेरी, करता जा उपकार।

थूक कर मेरे आँचल पे , मत लगाना तुम दाग़,

इतनी सी है विनती मेरी, कर लो तुम सुधार।

 

पंछी की चहचहाहट के सुर में में खो जाती,

चंदा को निहार-निहार कर रातों में सो जाती,

सूरज की लालिमा मेरे रंग को नया रंग देते,

इस धरती के सभी वासियों के दुख में हर जाती।

 

मेरी सुंदरता स्वच्छ नगर और हरी हरियाली,

अंत में इतना कहना अब न आए बदहाली।

मानव जगत ही बुद्धिजीवी, मत करना विनाश।

इससे ही मेरा जीवन सार्थक, लाए ख़ुशहाली।


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