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सवाल प्रतिनिधित्व के अधिकार का है | Newsforum

हम बहुत जल्दी अपने मुद्दों को भूल जाते हैं। शायद हमारा अनुसूचित जाति वर्ग 13 प्रतिशत आरक्षण संशोधन मुद्दे को भूल गया है। समय-समय पर यह बात विभिन्न मंचों में हमें उठाना पड़ेगा।

©विनोद कुमार कोशले, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

परिचय : सामाजिक चिंतक व विश्लेषक, एट्रोसिटी एक्ट, सुप्रीम कोर्ट व हाइकोर्ट में आरक्षण मामले निर्णय के विश्लेषक, कोर मेंबर, सोशल जस्टिस एंड लीगल फाउंडेशन संगठन छत्तीसगढ़.


 

 

पृष्ठभूमि

 

ज्ञात हो कि 4 सितंबर 2019 को छत्तीसगढ़ लोकसेवा (अनुसूचित जातियों-जनजातियों और अन्य पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण अधिनियम 1994 (क्रमांक 21 सन 1994) को और संशोधन करते हुए संशोधन अध्यादेश 2019 पारित किया। मूल अधिनियम की धारा 4 का संशोधन करते हुए अनुसूचित जाति 1 प्रतिशत वृद्धि के साथ 13 प्रतिशत, अनुसूचित जाति 32 प्रतिशत यथावत, अन्य पिछड़ा वर्ग 14 प्रतिशत से 27 प्रतिशत एवं आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (जनरल वर्ग) 10 प्रतिशत आरक्षण संशोधन के साथ ऑर्डिनेंस जारी हुआ।

 

उक्त ऑर्डिनेंस को ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत संशोधन मामले में 17 से अधिक पिटीशन लगाकर जनरल वर्ग के सैकड़ों लोगों ने चुनौती दी। हाईकोर्ट ने 27 फरवरी 2020 को केस में फैसला देते हुए संशोधन अध्यादेश 2019 को तय समय में विधानसभा में पारित नहीं करने के कारण आर्टिकल 213(2) का हवाला देते हुए अध्यादेश 2019 को नेचुरल डेथ माना।

 

कोर्ट में ओबीसी रिजर्वेशन के मामले में सेवानिवृत जज पटेल जी कमेटी गठित करने का जवाब राज्य की ओर से दिया गया। राज्य सरकार की ओर से सीधी भर्ती के लिए स्वीकृत एवं भरे पोस्ट की डाटा प्रस्तुत की। जिसमें 88208 पदों के विरुद्ध 51458 पद एससी-एसटी-ओबीसी वर्गों से भरने की जानकारी प्रस्तुत की गई। इस डेटा को कोर्ट ने मौजूदा 58 प्रतिशत से आरक्षण सीमा तक माना।

 

प्रस्तुत डेटा के आधार पर कोर्ट ने आगे कहा- “जब सरकारी क्षेत्रों में कुल पदों की संख्या का 58 प्रतिशत आरक्षित समुदाय द्वारा भर दिया गया है तो आज की तिथि में महाजन कमीशन 1983 की रिपोर्ट की प्रासंगिकता नहीं रह जाती है। इसे और स्पष्ट करने के लिए राज्य द्वारा दिए गए आंकड़े ओबीसी के संबंध में प्रतिनिधित्व में अपर्याप्तता सिद्ध नहीं करते हैं।

 

ओबीसी वर्ग की शासकीय सेवाओं में प्रस्तुत आंकड़ों में 12170 पदों के विरुद्ध 10302 कार्यरत बताया गया है। इस डेटा के बारे हमारे ओबीसी वर्ग के साथियों को जानकारी लेनी होगी एवं राज्य शासन को वैलिड अभ्यास के लिए दबाव बनाने होंगे। इंदिरा शाहनी केस में जस्टिस रेड्डी के कथन अनुसार विशेष परिस्थियों में 50 प्रतिशत आरक्षण सीमा की लिमिट को पार किया जा सकता है।

 

यदि हम अनुसूचित जाति वर्ग की आरक्षण वृद्धि पर बात करें तो इस मामले में कोर्ट ने एससी वर्ग का संशोधन 13 प्रतिशत आरक्षण पर कोई टिप्पणी नहीं की है। SC वर्ग की जनसंख्या जनगणना 2011 के अनुसार लगभग 12.83 प्रतिशत के आसपास है। जनगणना 2011 के आधार पर राउंड लाफ़ रूल के तहत SC वर्ग को 13 प्रतिशत आरक्षण देने में कोई कानूनी अड़चन नहीं है। विधानसभा में बिल पारित कर 13 प्रतिशत एससी वर्ग को आरक्षण दिया जा सकता था लेकिन अब तक 13 प्रतिशत आरक्षण संशोधन विधेयक पारित नहीं किया जा सका है।

 

13 प्रतिशत आरक्षण बिल पारित नहीं होने से SC वर्ग को नुकसान

 

छत्तीसगढ़ लोकसेवा (एससी-एसटी-ओबीसी वर्गों के लिए आरक्षण) संशोधन नियम 2012 के अनुसार 100 प्वाइंट रोस्टर में 12 बिंदु एससी वर्ग के लिए निर्धारित है। उक्त रोस्टर में छठवां बिंदु एससी वर्ग मिला हैं। यदि शैक्षणिक संस्थानों में या नौकरी के सीधी भर्ती में 100 पदों पर भर्ती की जाती है तो प्रति 100 पदों में 1 पदों का एससी वर्ग को सीधा नुकसान है या केवल 5 पद विज्ञापित होते हैं तो एससी वर्ग के कैंडिडेट का रोस्टर के अनुसार चयन हेतु नंबर ही नहीं आएगा।

 

पिछले 2 वर्षों में अब तक कई पदों का नुकसान हो चुका है। वर्तमान में कई वैकेंसी 5 पद ही निकलती है। इस तरह 5 पदों वाली वेकैंसी में रोस्टर के अनुसार एससी वर्ग के कंडीडेट चयन होने से वंचित हो जाएंगे। पीएससी के 200 पदों में 2 हमारे SC वर्ग के कंडीडेट अफसर बनने से वंचित हो गए। राज्य के मेडिकल सीटों में 600 सीट में 6 SC वर्ग के कंडीडेट MBBS डाक्टर बनने से वंचित हो गए।


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