तुम कौन हो…

©हिमांशु पाठक, पहाड़
तुम कौन हो?कहाँ हों?
इस जहाँ में हो या उस जहाँ में,
मैं नही जानता।
लेकिन मेरी दिल की,
गहराइयों में रहती हो ,
धुँधली यादें बनकर।
यूँ तो हर चेहरे में
तलाशता हूँ मैं तुम्हें,
पर तुम किसी भी चेहरे में,
नजर नही आती।।
तुम कौन हो? कहाँ हो,
यहाँ हो; या फिर,
किसी और जहाँ में हो।
मैं नही जानता ;
पर ये मेरा दिल धड़कता है,
सिर्फ तुम्हारे लिए,
तुम धुंध हो शायद,
या फिर एक अहसास हो
क्योंकि तुम्हारा अहसास तो होता है;
और तुम्हारी याद भी आती है,
लेकिन तुम नजर नहीं आती।।
बस नजर आता है,
एक धुँधला सा चेहरा ।।
तुम कौन हो?
मैं जब भी देखता हूँ,
उत्तर-पश्चिम की,
वो हरी-भरी पहाड़ी,
तो मेरा मन मचलने लगता है।
शायद तुम वहीं कहीं हो,
तुमसे मेरा नाता,
इस जन्म का तो नही है,
तुम किसी जन्म में,
मिली होगी मुझे,
जो, मेरी यादों के साथ,
मेरी दिल की गहराइयों में,
आज भी बसती हो,
तब भी मैंने ये वादा,
किया होगा तुमसे,
कि इस रिक्तता की,
भरपाई ना हो पाएगी,
अब कोई और,
मेरी जिंदगी में,
ना आ पाएगी।।
तुमसे यूँ बिछुड़ना,
तो अच्छा नही लगा मुझे,
तुम्हारी रिक्तता सदा,
रूलाएगी मुझे,
मेरी तन्हाईयों में,
तुम होगी ,यादों मे मेरे,
तब कोई और ,
मेरे पास नही आएगी।।
मैं नही जानता कि,
अब कब तुमसे ,
मुलाकात होगी,
इस जन्म में ना सही,
किसी और जन्म में,
बस तेरी यादों के साथ,
ये जिंदगी भी गुज़र जाएगी ।
फिर कोई और मेरी जिंदगी में,
ना आएगी ।।
तुम कौन हो?
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